महामृत्युंजय मंत्र जाप
महामृत्युंजय मंत्र धार्मिक मंत्र है जिसके के अलग-अलग नाम और रूप हैं लेकिन इसे "रुद्र मंत्र" के रूप में भी जाना जाता है। रुद्र मंत्र मे "रूद्र" शब्द का अर्थ भगवान त्र्यंबकेश्वर (भगवान शिव) का उग्र स्वरूप में जाना जाता है। "महामृत्युंजय" शब्द मुख्यतः तीन शब्दों को मिलकर बना हुआ शब्द है जिसका अर्थ, महा (महान), मृत्युंजय (मृत्यु), और जया (मतलब विजय), जिसका संक्षिप्त अर्थ मृत्यु पर जीत हासिल करना है।
ये धार्मिक मंत्र प्राचीन हिंदू पाठ ऋषि वशिष्ठ द्वारा लिखित ऋग्वेद में पाया गया है (ऋग्वेद से लेकर यजुर्वेद में इसका उल्लेख पाया गया है), जो भगवान शिव (त्र्यंबकेश्वर) को समर्पित है। बहुत से लोग इसे सबसे शक्तिशाली "त्र्यंबकम मंत्र" से भी जानते है, जिसमें भगवान शिव की तीन आंखों का जिक्र है।
महामृत्युंजय का मुख्यतः अर्थ है, बुरी चीजों और आत्मा से अलग होने के भ्रम पर विजय पाना। महामृत्युंजय मंत्र ऋग्वेद (आर.वी. ७. ५९. १२) की एक पंक्ति है, जिसे भगवान त्र्यंबकेश्वर (भगवान शिव) को संबोधित किया जाता है। महामृत्युंजय जाप सभी मंत्रों में सबसे शक्तिशाली मंत्र है जिसके पठन से भक्तो को सर्वोच्च देवता श्री भगवान् त्र्यंबकेश्वर का आशिर्वाद प्राप्त होता है।
महामृत्युंजय मंत्र
महामृत्युंजय मंत्र की संस्कृत लिपि (उच्चारण:
"ॐ त्र्यम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्, मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥"
महामृत्युंजय मंत्र का महत्वपूर्ण अर्थ यह है की, हम प्रमुख देवता भगवान त्र्यंबकेश्वर (शिव) की पूजा करते हैं, जो सभी जीवों और प्राणिमात्राओ को पोषण प्रदान करते हैं, उनकी प्रार्थना करते हुए, हम स्वस्थ जीवन और मृत्यु से मुक्ति पाने के लिए प्रार्थना करते हैं।
महामृत्युंजय मंत्र का शाब्दिक अर्थ
ओम (ॐ ) - यहाँ ओम यह शब्द सर्वशक्तिमान ,सर्वोच्च देवता को दर्शाता है।
त्र्यंबकम - तीन आंखों वाला ईश्वर।
यजामहे - शब्द का अर्थ है हम पूजा करते हैं।
सुगंधिम - सुखद सुगंध वाला।
पुष्टि - समृद्ध स्थिति।
वर्धनम - यह शब्द उस परमेश्वर को दर्शाता है जो स्वास्थ्य का पोषण करता है और पुनर्स्थापित करता है।
उर्वारुकम - परिणाम बाधाओं।
इवा - "जैसे" की।
बंधन - हानिकारक लगाव।
मृत्युदाता - मृत्यु को देने वाला।
मुक्षि - मृत्यु से मुक्तता (मोक्ष) ।
मा - नहीं।
अमृतत - विमोचन।
महामृत्युंजय जाप मंत्र के अनेक लाभ
भगवान शिव की तीसरी आंख तब खोली गई जब वे निरंतर चिंतन, ध्यान, जाप में मग्न थे। भगवान शिव वह हैं जो सभी भक्तों को आध्यात्मिक तप के लिए मार्गदर्शन करते हैं। इसलिए, महामृत्युंजय मंत्र का पठन समय, हम मृत्यु को जीतने के लिए भगवान शिव की साधना करते है। महामृत्युंजय जाप की शक्ति इतनी चरम है कि कोई भी मृत व्यक्ति को वापस जीवनदान हो सकता है।
इस धार्मिक महामृत्युंजय जाप को करने के बहुत सारे लाभ कुछ इस प्रकार दिए हैं:
1. धार्मिक रूप से जाप करने से किसी भी व्यक्ति को अकाल मृत्यु, गंभीर / दीर्घकालीन रोगों, और बुरी आत्माओं से बचाया जा सकता है।
2. यह माना जाता है कि, महामृत्युंजय मंत्र का जोर से और स्पष्ट रूप से (पठन ) उच्चारण करना उचित है, जिससे सकारात्मक प्रभाव और कंपन की निर्मिति होती है, और आसपास के सभी नकारात्मक ऊर्जाओ का नाश होकर स्वचालित रूप से वातावरण सकारात्मक ऊर्जाओं से भर जाता है।
3. इस धार्मिक मंत्र में उपचार करने की भी अपार शक्ति है, इसलिए बहोत से लोग "महामृत्युंजय यंत्र" का उपयोग रोग मुक्त, लंबी आयु के लिए किया जाता है।
4. महामृत्युंजय मंत्र के कई चमत्कार सार्वभौम दर्ज हैं, इस मंत्र के सकारात्मक धार्मिक प्रभाव हैं, जिसके प्रत्येक शब्द के उच्चारण में भी उपचारात्मक प्रभाव रखता है। भक्त को ये जाप सभी बीमारियों और असामयिक, अप्राकृतिक मृत्यु से लाभ और लंबी बीमारी से स्वस्थ होने में मदद करता है ।
5. यह माना जाता है की, १०८ बार जाप करना एकता दर्शाता है, प्रतिदिन १०८ बार महामृत्युंजय जाप करने से अधिकतम लाभ प्राप्त होता है।
6. महामृत्युंजय जाप एक सुरक्षा कवच की तरह काम करता है जो सभी प्रकार के भय (जैसे मृत्यु का भय) को दूर करता है, और मनुष्य को साहस देता है।
7. जब भक्तों ने पूरी श्रद्धा के साथ इस आध्यात्मिक मंत्र का जाप किया, तो भगवान के आशिर्वाद से सभी इच्छाएं / आकांक्षाएं पूरी होती है।
8. सभी प्रकार के दुखों, तनाव, समस्याओं और परेशानियों, ग्रह दोष से भी छुटकारा मिलता है, और त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग (नासिक) में १०८ जाप करने से अहंकार, क्रोध, ईर्ष्या, लालच और घृणा जैसे दुश्मनों पर विजय प्राप्त होता है।
9. यात्रा करते समय पठन करने से यह मंत्र सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
10. सर्वशक्तिशाली मंत्र जाप सुबह ४ बजे (ब्रह्मा मुहूरत) शुभ समय करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा निर्माण होती है जिससे आपकी दिन की शुरुवात अच्छी होती है। ये जाप पूरी निष्ठां से करने से घर में खुशियाली छा जाती है।
11. ये जाप का ध्यान करने से वह व्यक्ति पुनर्जन्म और मृत्यु (जन्म के बाद मृत्यु और मृत्यु के बाद जन्म ) के दुष्चक्र से मुक्त हो जाता है।
12. इस शक्तिशाली महामृत्युंजय मंत्र के कई लाभ हैं; ऋग्वेद (प्राचीन हिंदू पाठ) के अनुसार, महामृत्युंजय मंत्र का नियमित रूप से या जितनी बार संभव हो पठन करने से, संबंधित व्यक्ति के जीवन में लगभग सभी समस्याओं के लिए चिकित्सा के रूप में कार्य करता है। महामृत्युंजय मंत्र का जाप अंत में भावनात्मक, मानसिक रूप से समृद्ध पोषण देता है।
महामृत्युंजय जाप विधी
कोई भी व्यक्ति कभी भी इस शक्तिशाली मंत्र का जाप कर सकता लेकिन हमारे पुरोहितों द्वारा यह सुझाव दिया जाता है की महामृत्युंजय जाप विधी त्र्यंबकेश्वर मंदिर, नासिक में और सुबह जल्दी ब्रह्मा मुहूरत में ही करना उचित है। त्र्यंबकेश्वर मंदिर ऐसा पवित्र स्थान है जहाँ सभी अनुष्ठानों को धार्मिक रूप से संपन्न किया जाता है, और इसे १२ ज्योतिर्लिंगों में से एक के स्वरूप में भी माना जाता है।
महामृत्युंजय जाप विधी को स्नान (शरीर शुद्धिकरण) के बाद ब्रह्मा मुहूरत (सुबह ४:० ० बजे) किया जाना चाहिए। उसके बाद "आचमन" करना चाहिए और बाद में पूर्व की ओर का सामना करके प्राणायाम करने के बाद ध्यान केंद्रित करके, आसन पर बैठकर फिर महामृत्युंजय जाप (" ॐ त्र्यम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।, उर्वारुकमिव बन्धनान्, मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥") करना उचित है।
यह माना जाता है की, रुद्राक्ष माला (रुद्राक्ष से बनाई गयी माला) पर महामृत्युंजय जाप १०८ बार जाप करने से मंत्र की शक्ति में वृद्धि होती है क्योंकि १० बार सिद्धता, एकजुटता को दर्शाता है। माना जाता है कि दिन में एक बार भी इस मंत्र का जाप करने से लाभ के साथ-साथ अभीष्ट प्रभाव भी पड़ सकते हैं।
पुरोहितों द्वारा यह सुझाया जाता है की, इस जाप को ब्रह्म मुहूरत पर खाली पेट अनुष्ठान करना अधिक लाभकारी होगा। विधी किसी एक व्यक्ति के साथ या समूह के साथ भी की जा सकती है जोकि अधिक उचित है क्योकि जब समूह में १०८ बार स्थिर लय और पूरी श्रद्धा के साथ में पूरा करने से आस-पास सकारात्मक ऊर्जाए की उत्पत्ति होती हैं। महामृत्युंजय जाप माल विधी के लिए लगने वाली कुल निधी पुरोहितों द्वारा सुझाए गए महामृत्युंजय हवन के लिए उपयोगी सभी सामग्री पर निर्भर है।
अधिक विवरण के लिए, आप इस वेबसाइट से सीधे पंडित वेद गुरुजी से जुड़ सकते हैं।